Monday, November 9, 2015

Er Rational musings #93

Er Rational musings #93



आज फिर जीने की तमन्ना हैं।

आज फिर मरने का इरादा हैं।



चेहरा हैं या चाँद खिला हैं।

जू़ल्फ घनेरी शाम हैं क्या।

सागर जैसी आँखो वाली।

ये तो बता तेरा नाम हैं क्या।



दिल तेरा दिवाना हैं सनम।

जानते हो तुम कुछ ना कहेंगे हम।

मुहब्बत की कसम, मुहब्बत की कसम।



छुप छुप खडे हो जरूर कोई बात हैं।

पहली मुलाकात हैं ये पहली मुलाकात हैं।

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मिलिंद काळे, 9th November 2015

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