Er Rational musings #133
Assorted Shayari...
तरस रहा हूँ ऐ दोस्त
दो लब्ज मुहब्बत से पिये
कोई हिसाब ना माँगे
हमारे नेक नियत को लिये
समझा करो यारो
इशारो और इरादों को।
जब दील ही ना भरे
छोडकर ना जाओ हम ही को।
खयाल जब छू जाते हैं
ना होश रहता ना नींद आती।
आप जैसे आसपास हो
तो ना रात जाती और सुबह आती।
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मिलिंद काळे, 23rd November 2015
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