Saturday, November 14, 2015

Er Rational musings #112

Er Rational musings #112



शायरी (Assorted) of yesternight...



1]

रातके उजाले में

कभी हमने भी देखी थी

उनकी शोहरत,

जो दिन के अंधेरे में

नफ़रत से कम न थीं।



2]

बदले की आग ना बूझी

पानी भी ना हुई।

हवा की एक लहर

बदन की एक महक,

दिले नादान कर गयी



3]

यादें जिंदगी हैं यादें बंदगी हैं,

गर मुलाकात ना होती

गर कस्मे ना होती

वादे ना होते,

खुदा की कसम

ये दु:खभरी शायरी ना होती।



4]

छोड ही दो मेरे सनम

ना अफ़सोस हैं ना फिक्र हैं

जान छूटी लाखों पाये,

खुदा का शुक्र हैं।

सागर वहीं, नदीं वहीं

बस, नयी कष्टी मिल गयी

हमने जाना समझा, की

रात गयी बात गयी।



5]

खामोशी जुबान और लब्ज़

वक्त के गुलाम हैं प्यारे

महबूब की कसम हैं,

वरना

होठों की क्या मजा़ल

जाम़ खाली रह गये

और

अपने पैर लडख़डाये।



C H E E R S

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मिलिंद काळे, 15th November 2015

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