Monday, February 8, 2016

Er Rational musings #370

Er Rational musings #370



आँख मिचौली वा प्रेयसी च्या पाठी प्रियकराने धावणं वा खोटा खरा लपंडाव वा प्रणयाराधन वगैरे म्हणजे काय रे होतं पूर्वी? असं हल्लीची तरूणाई विचारेल. की त्यात काय विशेष? त्यात काय मजा?



व्हिंटेज अव्वा, इश्श, अय्या चा एक जमाना होता. 'डोळा मारणं' म्हणजे व्वाँव! कसलं डेरींग. पोरगी 'पटवणं' म्हणजे महा कर्मकठीण काम. सात आठ वर्ष कोणाला वेळ आहे. (सरळ मागणी घालावी, झट मंगनी पट ब्याह!)



त्याच पठडीतलं हे सुंदरसं भ्रमर गुंजन गीत.



वादा करो नही छोड़ोगी तुम मेरा साथ

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं भी हूँ

छुओ नही देखो जरा पीछे रखो हाथ

जवाँ तुम हो, जवाँ मैं भी हूँ



सुनो मेरी जां हसके मुझे ये कह दो

भीगें लबों की नर्मी मेरे लिए है

जवाँ नज़र की मस्ती मेरे लिए है

हसीं अदा की शोखी मेरे लिए है

मेरे लिए ले के आई हो ये सौगात

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं भी हूँ



मेरे ही पीछे आखिर पडे हो तुम क्यो

एक मैं जवाँ नहीं हूँ और भी तो हैं

मुझे ही घेरे आखिर खड़े हो तुम क्यो

मैं ही यहा नही हूँ और भी तो हैं

जाओ जाके ले लो जो भी दे दे तुम्हे हाथ

जहाँ सब हैं, वहाँ मैं भी हूँ



जवाँ कई हैं, लेकीन जहां में कोई तुम सी हसीं नही है

हम क्या करें

तुम्हे मिलू मैं, इसका तुम्हे यकीं हैं, हमको यकीं नही हैं

हम क्या करें

ऐसे नही भूलो जरा देखो औकात

किसीका तो देना होगा दे दो मेरा साथ

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं भी हूँ



गीतकार : साहिर,

गायक : लता - किशोर,

संगीतकार : राहुलदेव बर्मन,

चित्रपट : आ गले लग जा (१९७३)



प्रेम: शशी कपूर

प्रीती: शर्मिला टागोर



...किसीका तो देना होगा दे दो मेरा साथ

जहाँ तुम हो, वहाँ मैं भी हूँ...

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मिलिंद काळे, 9th February 2016

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