Friday, January 22, 2016

Er Rational musings #337

Er Rational musings #337



आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू

जो भी है बस यही एक पल है



अनजाने सायों का राहों में डेरा है

अनदेखी बाहों ने हम सब को घेरा है

ये पल उजाला है, बाकी अंधेरा है

ये पल गवाँना ना, ये पल ही तेरा है

जीने वाले सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरजू



इस पल के जलवों ने, महफ़िल सवारी है

इस पल की गर्मी ने धड़कन उभारी है

इस पल से होने से, दुनियाँ हमारी है

ये पल जो देखो तो, सदियों पे भारी है

जीने वाले सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरजू



इस पल के साये में अपना ठिकाना है

इस पल के आगे फिर हर शय़ फसाना है

कल किस ने देखा है, कल किस ने जाना है

इस पल से पायेगा, जो तुझ को पाना है

जीने वाले सोच ले, यही वक्त है कर ले पूरी आरजू



गीतकार : साहिर लुधियानवी,

गायक : आशा भोसले,

संगीतकार : रवी,

चित्रपट : वक्त (१९६५)



आज, आत्ता, ताबडतोब नावाची एक मनोरंजक मराठी कार्यक्रम काही वर्षांपूर्वी सादर व्हायचा, सूत्रधार अतुल परचुरे.



वरील गीत हेच सांगते. नो नाँनसेन्स. जे आहे ते इथे, आत्ताच. हाच तो क्षण. कशाला उद्याची बात. फुकाचा वादा. हा क्षण जगा. काय वर्डिंग, चाल, संगीतलय.



वक्त! 50 वर्षांपूर्वीचा मल्टी स्टार कास्ट स्टडेड विथ टाँल अँक्टर्स लाईक बलराज सहानी, राज कुमार, शशी कपूर, सुनील दत्त, साधना, शर्मिला टागोर, शशीकला, रहमान  इ.



ऐ मेरी जोहराजबी सारखी महफिल चेतवणारी अफलातून पेशकश यातलीच.



आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू च्या लयीवर लयबध्द संथ पदलालित्य, दोन मेन कपल्स व रेहमानचे सिगारेटचे धुरांडे!

मेलोडीयस!



व्वाँव...

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मिलिंद काळे, 22nd January 2016

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