Saturday, January 16, 2016

Er Rational musings #328

Er Rational musings #328

विरह म्हणजे कमतरता. कमतरतेची जाणीव व त्याच जाणीवेमुळे जाणवणारी उणीव. उणीव भासल्याने घुसमटणारी व्याकूळता. व्याकुळतेशी संलग्न आतुरता. आतुरता म्हणजे आर्त का झुरता?!

A personal, very personal emotional touch by OP Nayyar & Asha...

चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया
जहर भी चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया

चाँद के रथ में रात की दुल्हन जब जब आयेगी
याद हमारी आप के दिल को तड़पा जायेगी आप ने जो है दिया, वो तो किसी ने ना दिया

आप का गम जो इस दिल में दिनरात अगर होगा
सोच के ये दम घुटता है फिर कैसे गुजर होगा
काश न आती अपनी जुदाई, मौत ही आ जाती
कोइ बहाने चैन हमारी रूह तो पा जाती
एक पल हँसना कभी दिल की लगी ने ना दिया

गीतकार : एस. एच. बिहारी,
गायक : आशा भोसले,
संगीतकार : ओ. पी. नय्यर,
चित्रपट : प्राण जाये पर वचन न जाये (१९७३)

मास्टरपीस. चित्रिकरण झालेलं हे गीत फायनली प्रिंट मधून कट केलं गेलं. फिल्म फेअर पुरस्कार स्विकारायला सुध्दा अाशा हजर नाही राहीली. ओपी ने स्विकारला, व बिहारी बाबूं सोबतीने गाडीतून परतताना खिडकीतून बाहेर फेकून दिला.

Asha Bhonsle's last song, sung under OP's music direction.

What a tragic End!
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मिलिंद काळे, 16th January 2016

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