Tuesday, August 18, 2015

Er Rational musings #8

Er Rational musings #77



स्वत:चे office असल्याचा एक प्रचंड फायदा असतो. आणि जर तुम्ही तुमच्या office मध्ये एकटेच असाल तर सोन्याहून पिवळे.



Laptop वर background ला आवडती गाणी लावा व शांतपणे काम करत रहा.



आज फक्त गुलजार! एकापेक्षा एक श्रवणीय. किती तरल, ओघवती मुलायम सहजसुंदर भावपूर्ण अर्थपूर्ण गज़ल गाणी! परत परत ऐकावी अशीच.



ऐ जिंदगी, गले लगा ले...

आज कल पाँव जमींपर नहीं पडते मेरे...

आनेवाला पल जानेवाला है...

आंखों में हम ने आप के सपने सजाए हैं...

आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज है...

ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछडे चमन...

बेचारा दिल क्या करे, सावन जले भादो जले...

बीती ना बितायी रैना, बिरहा की जायी रैना...

बोले रे पपीहराबोले रे पपीहरा...

छोटी सी कहानी से, बारीशों की पानी से...

दिल ढ़ूँढ़ता है फिर वही फुरसत के रात दिन...

दो दीवाने शहर में, रात में या दोपहर में...

दो नैना और एक कहानी...

दो नैनों में आँसू भरे हैं निंदीया कैसे समाए...

एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में...

घर जाएगी, तर जाएगी, डोलियाँ चढ़ जाएगी...

हम ने देखी है, इन आखों की महकती खुशबू...

हवाओं पे लिख दो, हवाओं के नाम...

हजार राहें मूड के देखी, कही से कोई सदा ना

आई...

हुजूर इस कदर भी ना इतराके चलिए...

इस मोड से जाते है, कुछ सुस्त कदम रस्ते...

जाने कैसे बीतेंगी ये बरसातें...

जब भी ये दिल उदास होता है...

कोई होता जिस को अपना, हम अपना कह लेते यारो..

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चूने...

मेरा कुछ सामान, तुम्हारे पास पडा है...

मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म सांसें...

मुसाफिर हूँ यारों, ना घर हैं ना ठिकाना...

ना, जिया लागे ना...

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा...

ओ माझी रे, अपना किनारा नदीयाँ की धारा हैं...

फिर वही रात है, फिर वही रात है ख्वाब की...

रोज रोज आँखों तले, एक ही सपना चले...

रुके रुके से कदम, रुक के बार बार चले...

तेरे बीना जिया जाए ना...

तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नही...

तुझ से नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूँ मैं...

तुम आ गए हो, नूर आ गया है...

तुम्हे हो ना हो, मुझ को तो इतना यकीन है...

तुझ से नाराज नही जिंदगी, हैरान हूँ मैं...

वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है...



ह्याउप्पर काय लिहू?

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मिलिंद काळे, 18th August 2015

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